मौसम सा चंचल मन.............
....................... मौसम सा चंचल मन..................
मौसम समान मन भी चंचल हो हर वक्त बदलता रहता है,
रहता वादियों मे अतीत की कभी आगे की सोचा करता है
अधूरे अपने प्यार का सोच कर मौन अश्क रोया करता,
कभी रात भर दिवा स्वप्न मे बेसुध हो खोया रहता।
इस करुणा-कलित हृदय का क्रन्दन कौन समझ पाया है,
विकल रागिनी के विह्वल स्वरों के दुख से भी सुख पाया है।
दिल करता है उस असीम ग़म की सरिता मे बहा करूं,
कभी निश्चेष्ट हो कर आंसू के सागर में स्नान करूं।
वह भावुक कोमल सी नारी स्मृति मे सदा ही रहती है,
क्रूर-कठोर वक्त के हाथों अकथनीय कष्ट वो सहती है।
अधिकार नहीं अब अपना कोई वह औरों की अब थाती है,
अधिकार नहीं निज चंचल मन पर विस्मृत हो नहीं पाती है।
दिल करता है इस चंचल मन पर,कभी तो कोई गाज़ गिरे,
विस्मृत हों वो मधुर स्मृतियां, या इस शरीर का अवसान करें।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Milind salve
12-Feb-2023 03:30 PM
शानदार
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